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Dec 10, 2024

Geeta Jayanti I Shlokas

Today is Geeta Jayanti so I thought of looking at some Shlokas which have a lot of value in today's world. It is said that one should read Geeta on this day and try to decipher the meaning of the Shlokas, it goes deep inside the consciousness and changes something within

Putting these below:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ: आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को करते रहो और फल की चिंता न करो। फल की इच्छा से कर्म करना या कर्म न करना दोनों ही अनुचित हैं।

न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

अर्थ: आत्मा का न कभी जन्म होता है, न मृत्यु। यह न कभी पैदा होती है और न ही कभी समाप्त होती है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ: हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूं।

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

अर्थ: जो लोग मुझमें एकनिष्ठ भाव से निरंतर चिंतन करते हुए मेरी आराधना करते हैं, उन नित्य संलग्न भक्तों के योग-क्षेम का मैं स्वयं वहन करता हूँ।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, चिंता मत करो।

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः॥

अर्थ: जो भी भोग इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होते हैं, वे वास्तव में दुःख का कारण हैं। बुद्धिमान व्यक्ति उन भोगों में रमता नहीं है।

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥

जो व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं करता, सभी के प्रति मैत्रीपूर्ण और करुणावान होता है, जिसमें ममता और अहंकार नहीं होता, जो सुख-दुःख में सम होता है, वही मेरा भक्त है।

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥

अर्थ: मैं सबके हृदय में स्थित हूँ; मुझसे ही स्मृति, ज्ञान, और उनके विपरीत उत्पन्न होते हैं। वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ, मैं ही वेदों का रचयिता और वेदों का जानकार हूँ।




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